जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धान्त
जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धान्त
(Theory of cognitive development of jean piaget)
जीन पियाजे Jean Piaget
जीन पियाजे (1896-1980) स्विट्जरलैण्ड के एक प्रमुख मनोवैज्ञानिक थे अल्फ्रेड बिने के साथ बुद्धि परीक्षण पर कार्य करते समय उन्होंने बालकों के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धान्त की अवधारणा प्रस्तुत की।
पियाजे के अनुसार, अधिगम यांत्रिक क्रिया न होकर एक बौद्धिक प्रक्रिया है, यह एक सम्प्रत्यय निर्माण की प्रक्रिया है। यह सम्प्रत्यय निर्माण बालक की आयु के अनुसार होता रहता है। पियाजे द्वारा प्रतिपादित संज्ञानात्मक विकास के सिद्धान्त की व्याख्या करने से पहले हमें इससे सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण संप्रत्यय को जानना जरूरी है ये संप्रत्यय निम्नलिखित हैं।
1. अनुकूलन (Adaptation)
2. साम्यधारणा (Equilibration)
3. संरक्षण (Conservation)
4. संज्ञानात्मक संरचना (cognitive structure)
5. मानसिक क्रिया (Mental Operation)
6. स्कीम्स (Schemes)
7. स्कीमा (Schema)
8. विकेन्द्रण (Decentering)
स्विस मनोवैज्ञानिक पियाजे का कहना है, कि बच्चे की आयु बढ़ने के साथ साथ उसका कार्य क्षेत्र भी बढ़ता है और उसकी बुद्धि का विकास भी होता जाता है। उन्होंने बताया कि पहले बच्चा सरलतम प्रत्ययों के माध्यम से सीखना प्रारंभ करता है और जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है वह कठिन से कठिनतम प्रत्ययों को धारण करने लगता है।
जीन पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास की चार अवस्थाएँ बताई हैं -
1. संवेदी पेशीय / इद्रिय जनित गामक अवस्था - 0 से 2 वर्ष
2. पूर्व संक्रियात्मक अवस्था - 2 से 7 वर्ष
3. स्थूल / मूर्त संक्रियात्मक अवस्था - 7 से 11 वर्ष
4. औपचारिक संक्रिया / अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था - 11 से 15 वर्ष
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(1) संवेदी पेशीय अवस्था -
शिशु संवेदी अनुभवों का शारीरिक क्रियाओ के साथ समन्वय करते हुए संसार का अन्वेषण करता है। जन्म के बाद से शिशु आयु बढ़ने के साथ साथ शारीरिक क्रियाओं के माध्यम से बाह्य जगत का ज्ञान ग्रहण करता है। वह देखकर, सुनकर, स्पर्श करके, गंध के द्वारा तथा स्वाद के माध्यम से वस्तुओं का ज्ञान ग्रहण करता है। परिचितों को देखकर मुस्कान के साथ स्वागत करता है तथा अपरिचितों को देख भय का प्रदर्शन करता है। छोटे छोटे शब्दों को बोलने का प्रयास करता है।
इसके अंतर्गत छः अवस्थाएँ होती हैं -
(i) सहज क्रियाओं की अवस्था
(ii) प्रमुख वृत्तीय अनुक्रियाओं की अवस्था
(iii) गौण वृत्तीय अनुक्रियाओं की अवस्था
(iv) गौण स्कीमेटा के समन्वय की अवस्था
(v) तृतीय वृत्तीय अनुक्रियाओं की अवस्था
(vi) मानसिक संयोग द्वारा नये साधनों के खोज की अवस्था
(2) पूर्व संक्रियात्मक अवस्था -
प्रतीकात्मक विचार विकसित होते है, वस्तु र्थायित्व उत्पन्न होता है, बच्चा वस्तु के विभिन्न भौतिक गुणों को समन्वित नहीं कर पाता है। खिलौनों की आयु इसी अवस्था को कहा जाता है। इस अवस्था में शिशु खिलौनों का अनुकरण करते हैं। इस अवस्था मे शिशु, वस्तुओं को क्रम से रख सकता है, गिनती गिनना जान जाता है, वह रंगों को पहचता है और हल्के-भारी का ज्ञान हो जाता है। इस अवस्था को आतार्किक चिंतन की अवस्था के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि वह तर्क वितर्क करने योग्य नहीं होता । शिशु में वस्तु स्थायित्व का भाव जागृत हो जाता है वह निर्जीव वस्तुओं में संजीव चिंतन करने लगता है इसे जीव वाद कहते हैं। इस अवस्था में शिशु अहम वादी होता है तथा दूसरों को कम महत्व देता है।
इसके अंतर्गत दो अवस्थाएँ होती हैं -
(i) पूर्व वैचारिक अवस्था
(ii) अन्तदर्शी अवस्था
(3) मूर्त संक्रियात्मक अवस्था -
बच्चा मूर्त घटनाओं के सम्बन्ध में युक्तिसंगत तर्क कर सकता है और वस्तुओं को विभिन्न समूहों में वर्गीकृत कर सकता है। मूर्त चिंतन की अवस्था के नाम से भी जाना जाता है। इस अवस्था में बालक तार्किक चिंतन कर सकता है लेकिन बालक का चिंतन केवल मूर्त और प्रत्यक्ष वस्तुओं तक ही सीमित रहता है। बालक दिन, तारीख, समय, महीना, वर्ष आदि बताने योग्य हो जाता है। बालक दो वस्तुओं के बीच तुलना करके उनमें समानता व असमानता बता सकता है। वह सही गलत व उचित अनुचित में भेद करना सीख जाता है। इस अवस्था मे भाषा एवं संप्रेषण की योग्यता का विकास भी हो जाता है
(4) औपचारिक संक्रिया की अवस्था -
किशोर तर्क का अनुप्रयोग अधिक अमूर्त रूप से कर सकते हैं, परिकल्पनात्मक चिन्तन विकसित होते हैं। इस अवस्था में किशोर मूर्त के साथ साथ अमूर्त चिंतन भी कर सकता है इस अवस्था में मानसिक योग्यताओं का पूर्ण विकास हो जाता है इसे तार्किक चिंतन की अवस्था के नाम से भी जाना जाता है
उम्मीद है आप जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास भली प्रकार समझ गए होंगे। आप जीन पियाजे का सिद्धांत PDF के रूप में भी डाउनलोड कर सकते हैं। जहाँ आपको पियाजे के सिद्धांत के सम्बंद में पूर्व परिक्षाओं के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर (MCQ) भी प्राप्त हो सकेंगे।

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